कश्मीर को कश्मीर रहने देना.... उसे दिल्ली या मुंबई मत बनाना...
"पूंजीवाद जब कभी किसी क्षेत्र में पहुँचा है, उसने अपनी नींव जमाने के लिए वहां की सांस्कृतिक जड़े खोद कर रख दी है ।"
आपके मिट्टी पर आपके संसाधनों को आपसे छीन कर, आपको खुद पर आश्रित कर , आपके ही चीजो को आपको बेच कर चला जाता है और आपके पास रह जाता है तो सिवाए एक बर्बाद हो चुकी सभ्यता के अलावा और कुछ भी नहीं ।
पूंजीवाद या औद्योगिकी कभी भी अकेले नहीं आता । वो अपने साथ अपना नशा और अपने यहां की संस्कृति लेकर आता है । भारत सालों तक गुलाम रहा है। आप खुद देख पाएंगे कि इस गुलामी का एक असर ये है कि आज कुछ गिने चुने आदिवासी या बहुत पुराने गांवों में ही भारतीयता बची हुई है । वरना वेस्टर्न तो हम कब का हो चुके...। हमारे गांव की सभ्यता संस्कृति पूंजीवाद ने हमसे छीनी और फिर एक बड़ा सा रेस्टुरेंट बना कर उसी संस्कृति को हमें बेच कर चले गए । पिंड बलूची के बाहर देशी लिबास में बैठे ताऊ के बगल में फ़ोटो खिंचवाते वक़्त आपको ये ख्याल कभी आया क्या? नहीं न..!!
अब आते है कश्मीर पर....। थोड़े से में बहुत कुछ कहने की कोशिश करता हूँ, उम्मीद करता हूँ आप समझेंगे । वैसे भी जिस जनता को हर बात कह के समझानी पड़े उससे अच्छा है कि उसका पतन हो जाये । खैर,...राष्ट्रवाद की आड़ में ये ध्यान रहे कि 370 कश्मीर से अलगांववाद और आतंकवाद मिटाने के लिए हटाया गया है, कश्मीरियत खत्म करने के लिए नहीं । बेशक आपको दिखाया जा रहा है कि अलगांववादी रो रहे हैं और आतंकवाद की कमर टूटने वाली है लेकिन जो आपको नहीं दिखाया जा रहा वो ये कि कल को कश्मीर में भी पूंजीवाद पहुँचेगा । कहीं ऐसा न हो कि छत्तीसगढ़ की तरह वहां की भी हरियाली पर किसी अडानी अम्बानी के इंडस्ट्री की धुंध चढ़ने लगे । छोटे छोटे कश्मीरी ढाबो की जगह बड़े बड़े होटल खुलने लगे और फिर वही कश्मीरी वेटर और नौकर बन कर उन होटलो में कश्मीरियत परोसने को बाध्य हो जाये एक महंगे बिल और GST के साथ । डल झील का हाल देश के बाकी तलाबो की तरह न हो जाये । हाथ से खेवे जाने वाले नावों और शांत हिमालय के झील में कलकल करते पतवारों की जगह कोई स्टीमर बोट ना ले ले ।
कश्मीर को कश्मीर रहने देना...उसे दिल्ली या मुम्बई बनाने की कोशिश मत करना । हालांकि ये होगा नहीं । पूंजीपतियों ने तो होटल्स और इंडस्ट्री लगाने के किये सरकार को मोटा कमीशन भेज भी दिया होगा । आप झंडा घुमाइए । लेकिन बस इतना जरूर कीजियेगा की कल को अगर कश्मीरी अपने प्रदेश में अपनी रोजी रोटी बचाने के लिए विकास का विरोध करते दिखें तो सरकार से दो सवाल आप भी जरूर पूछियेगा । कश्मीर का विकास कश्मीरी तरीके से हो, वरना...यकीन मानिए कुछ साल में आपको कश्मीर तो दिखेगा लेकिन कश्मीरियत नहीं दिखेगी ।
ना यकीन हो तो बिरसा मुंडा के आंदोलन की वजह पढ़े । आदिवासियों ने विकास का विरोध किया था । और तब उन्हें राष्ट्रद्रोही कहा गया था । और आज उनके हम उपले और पत्तो से बनी थालियां amazon और फ्लिपकार्ट से खरीद रहें है जो कभी हमारा ही था।
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